गोशाला

गोशाला
 

Heading text 1

नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च
जगद्धिताय कृष्णाय गोविंदाय नमो नम:

“मैं परम सत्य श्रीकृष्ण को सादर प्रणाम करता हूँ जो गोमाता और ब्राह्मणों के तथा सभी जीवों के हितैषी हैं। मैं गोविंद को, जो समस्त इन्द्रियों के लिए आनंद के सिंधु हैं, बारंबार प्रणाम करता हूँ।”

“श्रील सच्चिदानंद भक्तिविनोद ठाकुर का आविर्भाव 2 सितंबर 1838 में श्री केदारनाथ दत्त के रूप में नदिया ज़िले के उला गाँव में हुआ था, जोकि उनके मामा का घर था। किंतु उनके पूर्वजों का निवास स्थान उड़ीसा राज्य के केंद्रपाड़ा ज़िले में स्थित छोटी ग्राम था। छोटी श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का श्रीपात है और उन्होंने स्वयं यहाँ निवास किया है। अतएव उनके चरणकमलों की रज से सुशोभित होने के कारण यह स्थान एक महान तीर्थ बन गया है।” ‘सर्वोच्च कृपा की प्रशंसा’, ठाकुर भक्तिविनोद द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहारों की प्रशंसा, श्रील गौर गोविंद स्वामी द्वारा

– भगवद्-दर्शन पत्रिका, मई/जून 2001

“श्रील सच्चिदानंद भक्तिविनोद ठाकुर का आविर्भाव 2 सितंबर 1838 में श्री केदारनाथ दत्त के रूप में नदिया ज़िले के उला गाँव में हुआ था, जोकि उनके मामा का घर था। किंतु उनके पूर्वजों का निवास स्थान उड़ीसा राज्य के केंद्रपाड़ा ज़िले में स्थित छोटी ग्राम था। छोटी श्रील भक्तिविनोद ठाकुर का श्रीपात है और उन्होंने स्वयं यहाँ निवास किया है। अतएव उनके चरणकमलों की रज से सुशोभित होने के कारण यह स्थान एक महान तीर्थ बन गया है।” ‘सर्वोच्च कृपा की प्रशंसा’, ठाकुर भक्तिविनोद द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहारों की प्रशंसा, श्रील गौर गोविंद स्वामी द्वारा – भगवद्-दर्शन पत्रिका, मई/जून 2001

स्वयं श्रीकृष्ण करते हैं। ‘गोविंद’ तथा ‘गोपाल’ के नामों से सुप्रसिद्ध और ‘गोकुल’ धाम में एक ग्वाले के रूप में निवास करते हुए, श्रीकृष्ण व्यक्तिगत रूप से उन्हें चराने लेकर जाते हैं, उनका दूध निकालते हैं, उनका आलिंगन करते हैं, उनका विभिन्न आभूषणों द्वारा श्रृंगार करते हैं, उनकी अराधना करते हैं तथा अत्यधिक आनंद के साथ उनसे प्राप्त दूध का पान करते हैं और हर प्रकार से उनकी देखभाल करते हैं। बाल्यकाल में श्रीकृष्ण पर पूतना, शकतासुर, त्रिणावृत जैसे अनेक खतरनाक दानवों ने आक्रमण किया था, और उस समय व्रजभूमि की बड़ी गोपियाँ एवं माता यशोदा सभी प्रकार के अमंगल को विदुरित करने के लिए कृष्ण के मस्तक पर गाय की पूँछ घुमा देती थीं।

मंदिर में अभिषेक के तथा अन्य शुभ समारोह के दौरान, शास्त्रों ने गाय का गोबर और गोमूत्र के आध्यात्मिक, वैद्यक-संबंधी एवं पवित्र करने वाले महान गुणों के अत्यधिक लाभदायक होने के कारण उनका प्रयोग करने का निर्देश दिया है। वाल्मिकि रामायण में कथित है कि जिस व्यक्ति के पास गाय है, सुख एवं आनंद उससे कभी दूर नहीं जाता और यह निश्चित ही सत्य है क्योंकि गायों की सेवा करके, जोकि श्यामसुंदर को अत्यंत प्रिय हैं, व्यक्ति नि:संदेह उनकी कृपा तथा अनुकंपा प्राप्त करता है और परम सौभाग्य ऐसे व्यक्ति की प्रतीक्षा करता है। वेद, साधु एवं संत तथा स्वयं परम भगवान श्रीकृष्ण यह घोषणा करते हैं कि गोमाता की रक्षा व सेवा मानव-समाज के कष्टों का महानतम समाधान और वास्तविक शांति का पथ है।

इसी कारणवश परम भगवान श्रीकृष्ण ने ‘गो-रक्ष्य’, गोमाता की रक्षा करने का आदेश प्रदान किया है।

गायों के संग में केवल बैठने से व्यक्ति को अनुभव होगा कि उसके पूरे मन में शांति का उदय हुआ है और गोमाता की कृपा से उसे तत्क्षणात श्रीकृष्ण की उनकी प्रियतम गायों के साथ दिव्य आध्यात्मिक लीलाओं का स्मरण होगा। सभी वेदों में गायों का महत्त्व तथा उनकी सेवा करने का महिमागान दिया गया है और नि:संदेह यह प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह गोमाता की सेवा करे। कलि-काल में जब घर पर गोमाता की सेवा करना संभव न हो, तो व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से गोशाला जाकर गायों की सेवा करनी चाहिए या फिर गोशाला को गायों की सेवा करने में सहायता करनी चाहिए। गोमाता के सुख के लिए की गई सेवाएँ कभी भी श्रीगोविंद द्वारा अंदेखी नहीं की जाएँगी और निश्चित ही ऐसा व्यक्ति जिसनें भगवान कृष्ण को अत्यंत प्रिय गायों की सेवा की है, उनकी कृपा का पात्र होगा।

 

गो-सेवा:

हमें गायों की सेवा बिल्कुल उसी भावना से करनी चाहिए, जिस भावना से परम भगवान श्रीकृष्ण वृंदावन में उनकी सेवा किया करते थे। श्रीमद्-भागवतम इसका विस्तारपूर्वक उल्लेख करती है कि किस प्रकार श्रीकृष्ण प्रतिदिन प्रात:काल गायों तथा बछड़ों को गोवर्धन पर्वत पर चराने ले जाते हैं। वेदों के निर्देशानुसार हमें प्रतिदिन अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने से पूर्व गोमाता की (चारा, छत, इत्यादि‌) आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए। आर्यों को, अर्थात् सभ्य समाज को इसी प्रकार गायों की सेवा करनी चाहिए।

 

गो-पूजा:

वैदिक ग्रंथों के अनुसार सभी देवी-देवता गोमाता के शरीर में निवास करते हैं। गोमाता के शरीर का दिव्य एवं पूजनीय होने का यही प्रमाण है। गरुड़-पुराण के अनुसार जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में केवल एक बार गोमाता की पूजा की है, मृत्यु के पश्चात वह नरक के घोर कष्टों से बच जाएगा। पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान ने स्वयं गो-पूजा को देवताओं के राजा इंद्र की पूजा से अधिक महत्त्व दिया।

 
 

गो-रक्षा:

यदि हम गाय को अपनी माँ के रूप में स्वीकार करते हैं, तो निश्चित ही गोमाता हमारी उपासना व प्रेम की हकदार हैं। हमें उनकी हर परिस्थिति में रक्षा करनी चाहिए। वैदिक काल में यह प्रत्येक मानव की ज़िम्मेदारी थी कि वह किसी भी कीमत पर गोमाता की रक्षा करे।

 
Share :