श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी
“नीलमणि श्रीकृष्ण के प्राकट्य का गुह्यतम रहस्य”
श्रीमद्भागवतम् के दसवें स्कंध के प्रथम तीन अध्यायों में भगवान श्री कृष्ण के प्राकट्य का वर्णन दिया गया है। प्रातः काल ही हमने अपने परम आराध्य गुरु महाराज श्री श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी महाराज द्वारा कि...
Read More
अभिनंदन पत्र
प्रिय पाठकगण
सर्वप्रथम इस अवसर पर मैं अपने प्राणप्रिय गुरुदेव, ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत १०८ श्री श्रीमद् गौर गोविन्द स्वामी महाराज के चरणों में सादर प्रणाम अर्पित करता हूँ।
तदुपरान्त मैं सर्वोत्तम धर्मप्रचारक गुरु, सम्पूर्ण जगत के उद्धारकर्ता, श्रीकृष्णकृपामूर्ति ॐ वि...
Read More
भगवान का उद्देश्य विफल रहा
प्रिय पाठकों,
पिछले लेख में हमने एक शुद्ध भक्त की स्थिति पर चर्चा करने का प्रयास किया था। आज हम भौतिक संसार में उनकी उपस्थिति के महत्त्व तथा भगवान के अपने ही उद्देश्य में विफल होने पर चर्चा करेंगे।
शुद्ध भक्त इस संसार में या तो श्रीकृष्ण की इच्छा से आते हैं या फिर अपनी स्वतंत्र इच्छा से अनंत दुः...
Read More
प्रभु की चाल
प्रिय पाठकगण,
परम दयालु भगवान श्री कृष्ण व्यक्तिगत रूप से बद्ध-आत्माओं की विभिन्न उपायों द्वारा सहायता करना चाहते हैं। समस्त उपायों में से सर्वाधिक मंगलप्रद व उपयुक्त उपाय है – अपने नित्य-परिकर को इस भौतिक संसार में भेजना।
शुद्ध-भक्तों का मुख्य उद्देश्य बद्ध-जीवों को सभी प्रकार के संभावित ...
Read More
चरम लक्ष्य की प्राप्ति के सोपान
प्रिय पाठकगण,
अनेक योनियों तथा विभिन्न ब्रह्माडों में विचरण करने के उपरांत, जीव को भगवद्भक्तों का संग प्राप्त होता है, जिसके फलस्वरूप उस भ्रमणशील जीव का भौतिक जीवन समाप्त हो जाता है [श्रीमद्-भागवतम १०.५१.५३]। इसलिए हम निश्चित रूप से अपने को सौभाग्यशाली मान सकते हैं, क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं...
Read More
वैष्णव शिष्टाचार भाग 1
प्रिय पाठक,
साधु का संग करने से पूर्व, यह आवश्यक है कि हम कुछ सिद्धांतों से अवगत हों एवं धर्मानुकूल आचरण का अनुशीलन करके स्वयं को उन सर्वश्रेष्ठ साधु-पुरुषों की संगति के लिए योग्य बनाऍं। ऐसा करने से हम अत्यंत सहजता से गुरु तथा गौरांग की कृपा के पात्र बन सकते हैं। वैष्णव समाज के इन सिद्धांतों तथा मर...
Read More
वैष्णव शिष्टाचार भाग 2
प्रिय पाठकगण,
श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से हम वैष्णव आचरण पर, अपने पिछले लेख से आगे चर्चा करेंगे:
७) भगवान का भक्त सभी जीवों का सम्मान करता है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर, जो सप्तम गोस्वामी भी कहलाते हैं, अपने भजन में वर्णन करते हैं, “मुझे सभी ब्राह्मण एवं वैष्णव की कृपा की ...
Read More
वैष्णव शिष्टाचार भाग 3
हरे कृष्ण प्रिय पाठकों,श्री श्री गुरु एवं गौरांग की महती कृपा से इस लेख में हम कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण वैष्णव सिद्धांतों तथा वैष्णव सदाचार पर चर्चा करने का प्रयास करेंगे, जिनकी सहायता से हम अपने आध्यात्मिक कर्तव्यों का यथावत पालन कर सकते हैं।
१०) जब भी गुरुदेव हमें कोई सेवा करने का आदेश देते हैं और...
Read More
महत कृपा
प्रिय पाठकगण,
श्रीगुरु एवं श्रीगौरांग की महती कृपा से, हम पूर्ववर्ती आचार्यों के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए एक अत्यंत गुरुत्वपूर्ण विषय पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे, जो वस्तुतः हमारे जीवन के परम लक्ष्य पर आधारित है।
कृष्ण-भक्ति के सम्पर्क में आने का सौभाग्य हमें केवल और केवल भक्...
Read More
शरणागति
प्रिय पाठकगण,
श्री श्री गुरु एवं गौरांग की कृपा से आज हम ‘शरणागति’ और ‘शरणागत जीवात्माओं के लक्षणों’ पर चर्चा करेंगे।
शरणागति भक्ति का प्रारंभिक लक्षण तथा मूल सिद्धान्त है। जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर कार्यहीन रहता है, उसी प्रकार शरणागति के बिना तथाकथित भक्ति भी प्रभावहीन...
Read More
राधाष्टमी - श्रीमति राधारानी का प्राकट्य
श्री राधिका स्तव
श्री राधिका पाद पद्दमे विज्ञाप्ति
(श्रील रूप गोस्वामी)
(1)
राधे! जय जय माधव दयिते।
गोकुल-तरुणी मण्डल-महिते॥
“हे राधे! हे माधव की प्रिया! गोकुल की सब तरूणियों द्वारा वंदित देवी, आपकी जय हो!”
(2)
दामोदर-रतिवर्धन-वेशे।
हरिनिष्कुट-वृन्दाविपिनेशे॥
...
Read More
कृपा के बिना संदेह और आलोचना असाध्य रोग हैं
प्रिय पाठकगण,
श्री गुरु एवं श्री गौरांग की महती कृपा से हम अपने शुद्धीकरण हेतु विभिन्न विषयों पर चर्चा कर रहे हैं। इस लेख में हम जानने का प्रयास करेंगे कि साधु-गुरु के प्रति हमारा वास्तविक भाव क्या होना चाहिए।
गुरुदेव के प्रति शंकालु मनोवृत्ति होना तथा उन्हें मर्त्य-जगत का स्वरूप समझना हमा...
Read More