अभिनंदन पत्र

 

प्रिय पाठकगण

सर्वप्रथम इस अवसर पर मैं अपने प्राणप्रिय गुरुदेव, ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत १०८ श्री श्रीमद् गौर गोविन्द स्वामी महाराज के चरणों में सादर प्रणाम अर्पित करता हूँ।

तदुपरान्त मैं सर्वोत्तम धर्मप्रचारक गुरु, सम्पूर्ण जगत के उद्धारकर्ता, श्रीकृष्णकृपामूर्ति ॐ विष्णुपाद परमहंस परिव्राजकाचार्य अष्टोत्तरशत १०८ श्री श्रीमद् ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी के चरणों में नतमस्तक होता हूँ, जिनके अद्वितीय अवदान की कल्पना कर पाना भी भी कठिन है। यदि वे न होते, तो हममें से अधिकांश जीव भौतिक संसार की प्रचंड दावाग्नि में लुप्त होते।

अंत में, मैं उन सभी वैष्णव-भक्तों को आदरपूर्वक नमन करता हूँ जो श्रील प्रभुपाद के पदचिह्नों का दृढ़तापूर्वक अनुसरण करते हुए, विश्व के प्रत्येक कोने में लाखों भाग्यशाली जीवात्माओं के मध्य श्रीकृष्ण की महिमा का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

इस अवसर पर, मैं आप सभी पाठकों से ‘इस्कॉन पट्टामुंडाई’ प्रोजेक्ट को स्वीकारने तथा इससे जुड़ने का सविनय निवेदन करता हूँ। यह प्रोजेक्ट हमारे परम आराध्य गुरुदेव, श्री श्रीमद् गौर गोविंद स्वामी महाराज एवं जगद्गुरु श्रील प्रभुपाद को समर्पित एक विनम्र भेंट है, एक ऐसे मंच के रूप में जिसके द्वारा सभी भक्त श्रीगुरु-परम्परा से प्राप्त करुण और प्रेममयी शिक्षाओं के माध्यम से अपनी भक्ति-लता को पोषित कर सकें तथा श्री श्री राधा-कृष्ण के प्रति प्रेमाभक्ति विकसित कर सकें।

पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर की बहिरंगा शक्ति, महामाया जीवों के नित्य स्वरूप को ढकने के उद्देश्य से दो विशेष शक्तियों के बल पर कार्य करती है। पहली शक्ति है प्रक्षेपात्मिका शक्ति जिससे महामाया जीवात्माओं को भौतिक संसर्ग के भयावह महासागर में फेंक देती है और दूसरी है आवरणत्मिका शक्ति जिससे वह जीव के दिव्य-ज्ञान को ढक देती है। इन दोनों शक्तियों के प्रभाव से जीव अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानने में असमर्थ रहता है। इस स्थिति में वह अपने ‘कृष्ण दास’ होने के स्वभाविक स्वरूप से पूर्णतया विस्मृत हो जाता है और व्यामोह में बंधकर सोचने लगता है कि, “मैं ही सभी वस्तुओं का एकमात्र स्वामी एवं भोक्ता हूँ”। केवल इस प्रभुत्व मानसिकता के कारण ही वह अनेकों योनियों में देहान्तरण करने तथा ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों में विचरण करने के लिए बाध्य हो जाता है।

बद्ध जीवों की इस पीड़ात्मक स्थिति के निवारण हेतु पूर्ण पुरुषोत्तम परमेश्वर ने भौतिक धरातल पर अवतरित होकर स्वयं भगवद्गीता का उपदेश प्रदान किया और यह स्पष्ट किया कि: एकमात्र मेरी शरण ग्रहण कीजिए, केवल तभी आप माया के चुंगल से मुक्त हो पाऍंगे। [भगवद्गीता ७.१४]

परन्तु, इस गुह्य ज्ञान का श्रवण व अध्ययन करने के बावजूद बद्धजीव इसका लाभ प्राप्त नहीं कर पाता क्योंकि उसके पास श्रीकृष्ण के चरणकमलों में शरणागत होने की तनिक भी शक्ति या पात्रता नहीं है। अतः बद्धजीवों के सुहृद होने के कारण भगवान ने श्री व्यासदेव के माध्यम से अनेक शास्त्र प्रकाशित किए ताकि बद्धजीव उनका अध्ययन कर अपनी वैधानिक स्थिति से अवगत हो सके।

यद्यपि भगवान श्रीकृष्ण, परमात्मा रूप में प्रत्येक जीव के हृदय में विद्यमान हैं और करुणावश उन्हें बारम्बार उनकी बद्धावस्था का स्मरण कराते रहते हैं, परन्तु अनन्तकाल से अपने ‘कृष्ण दास’ होने की शाश्वत स्थिति से अनभिज्ञ बद्धजीव अपनी आत्मपहचान एक देह रूपी आवरण एवं जड़ेन्द्रियों के दास के रूप में करता है। वह परमात्मा के प्रबोधन को समझने में सर्वथा असमर्थ रहता है। कभी वह मन के वेग को परमात्मा का प्रेरण मान बैठता है तो कभी परमात्मा के प्रबोधन को मन का उकसावा। अतएव वह इस भौतिक संसार के गहरे अंध-कूप में निरंतर कष्ट भोगता है।

इस स्थिति में उसकी रक्षा कौन कर सकता है? श्रीकृष्ण की अहैतुकि कृपा व योगमाया की उत्तम व्यवस्था से, कृष्ण-प्रिय-जन, कृष्ण के अंतरंग पार्षद इस भयावह महासागर में निमग्न जीवात्माओं का उद्धार करने के उद्देश्य से अवतरित होते हैं। ऐसे महापुरुषों को ‘साधु-गुरु’ के रूप में जाना जाता है, जोकि श्रीकृष्ण की इच्छा से  प्रकट होते हैं। केवल वही समस्त जीवों के एकमात्र रक्षक एवं पालक हैं। यह विवरण श्रीमद्भागवतम् [११.२६.३२-३३] में उल्लेखित है। वे न तो बद्धावस्था में हैं और न ही वे कभी इस बद्ध-स्थिति में थे। वे इस भौतिक संसार के जीव नहीं हैं और उनका आविर्भाव तथा तिरोभाव पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के इस भौतिक धराधाम पर प्राकट्य तथा अप्राकट्य के समान होता है। [श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला ८.३९]

अतएव हमारे सभी गौड़ीय वैष्णव आचार्य श्रीकृष्ण के विश्वस्त परिकर हैं, जो भौतिक संसार में पतितात्माओं का उद्धार करने के लिए अवतरित होते हैं। उनकी सेवा किए बिना तथा उन्हें प्रसन्न किए बिना परम लक्ष्य को प्राप्त करने की कोई आशा नहीं हैं। श्रील नरोत्तम दास ठाकुर इस सिद्धान्त की पुष्टि करते हैं – छाड़िया वैष्णव सेवा निस्तार पेयेछे केबा, हम सभी के लिए शुद्ध वैष्णव के चरणों में प्रार्थना करना व उनकी सेवा करना अनिवार्य है।

अतः हम सभी भक्तों को आमंत्रित करते हैं और उनसे यह विनम्र निवेदन करते हैं कि वे निरंतर, निष्काम भाव से भगवान के शुद्ध-भक्तों के चरणों में प्रार्थनाऍं अर्पित करें, उनकी सेवा करें और हमारे इस विनीत प्रयास ‘इस्कॉन पट्टामुंडाई’ प्रोजेक्ट का सम्पूर्ण लाभ उठाऍं।

अंततः हम उन सभी भक्तों का अभिनन्दन करते हैं तथा धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इस परियोजना में अपना अमूल्य योगदान दिया और उन्हें भी जिन्होंने इसके प्रक्षेपण को सफल बनाने हेतु सहयोग प्रदान किया।

हरे कृष्ण

आपका सेवक एवं शुभचिंतक

हलधर स्वामी

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